इतिहास और राजनीति >> विभाजन की असली कहानी विभाजन की असली कहानीनरेन्द्र सिंह सरीला
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व्यापक दस्तावेजी स्त्रोतों की रोशनी में एक विवादास्पद युग का दक्षता एवं दृढ़ विश्वास के साथ किया गया अन्वेषण...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
व्यापक दस्तावेजी स्त्रोतों की रोशनी में एक विवादास्पद युग का दक्षता एवं
दृढ़ विश्वास के साथ किया गया अन्वेषण। इतिहासज्ञ एवं सामान्य पाठक समान
रूप से इस प्रवाहपूर्ण एवं ना़टकीय आख्यान से काफी कुछ सीख सकते हैं।
-सर मार्टिन गिलबर्ट,
यह पुस्तक भारत के विभाजन के बारे में प्रचलित रूढ़िगत विवेक के लिए एक
आधारभूत चुनौती है....उत्तर-पश्चिम भारत में एक मुस्लिम राज्य की सृष्टि
का उद्देश्य शीतयुद्ध के लिए आधार प्रदान करना था....यह लीक से हटकर लिखी
गई पुस्तक है।
-के. सुब्रह्यण्यम,
नवीन शोध का परिणाम (यह पुस्तक) कई प्रकार से अद्वितीय है....यह तथ्यों के
दुहराव वाली पुस्तक नहीं है; यह नवीन तथ्यों का उद्घाटन करती
हैं...अत्यन्त पठनीय...
-जयवन्त सिंह,
(यह पुस्तक) विभाजन के गहनतर कार्य-कारण सम्बन्धों की पहचान करती है....
और भारत की स्वतन्त्रता के निमित्त अमेरिका द्वारा अदा की गई अतिरिक्त
भूमिका को रेखांकित करती हैं।
जे एन. दीक्षित,
(यह पुस्तक) मेरे गृहराज्य जम्मू-कश्मीर, विशेष रूप से सामान्यतः उपेक्षित
उत्तरी क्षेत्रों एव गिलगित एजेंसी से सम्बन्द्ध मानसिक आघात पहुँचाने
वाली घटनाओं पर अत्यन्त रोचक ढंग से विचार करती है।
डॉ. कर्ण सिंह,
इस नाटकीय ऐतिहासिक वृत्तान्त में, 1947 में भारत के विभाजन से सम्बद्ध
एशिया का महाखेल अपनी पराकाष्ठा तक पहुँचता है...इसमें (लॉर्ड लुइस)
माउंटबेटन एवं विभाजन (की प्रक्रिया) के अन्य सहभागियों के साथ संवाद के
माध्यम से अभिलेखीय स्त्रोतों एवं सूक्ष्मदृष्टियों का व्यापक परीक्षण
किया गया है।
-प्रोफेसर विलियम रोजर लुइस,
सत्ता एवं विश्वासघातों का एक आख्यान-जो उद्घाटित करता है कि विभाजन के
समय अंग्रेजों के वास्तविक उद्देश्यों क्या थे, और किस प्रकार भारतीय
नेतृत्व उनसे मात खा गया।
भारत के विभाजन एवं अंग्रेजों की आशंकाओं के मध्य निर्णायक कड़ी थी-सोवियत रूस का मध्य-पूर्व में ऊर्जा के (तैल) कूपों पर नियन्त्रण, जिस पर इतिहासकारों एवं विश्लेषकों ने पर्याप्त जिस पर इतिहासकारों एवं विश्लेषकों ने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। ब्रिटिश नेताओं ने जब अनुभव कर लिया कि भारतीय राष्ट्रीय नेता सोवियत यूनियन के विरुद्घ महाखेल में उनका सहयोग नहीं करेंगे, उन्होंने ऐसी परिस्थिति तैयार करने की सोची कि वे उनसे अपने मन्तव्य को पूरा करा लें। इस प्रक्रिया में, वे अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु ‘इस्लाम’ का राजनीतिक इस्तेमाल करने में भी नहीं हिचके। कैसे एक सघन धूम्रपट के पीछे इस योजना की कल्पना की गई और कैसे इसे कार्यान्वित किया गया-यही सब इस ‘विभाजन की असली कहानी’ की विषयवस्तु है।
लेखक द्वारा खोज निकाले गए अतिगोपनीय दस्तावेजी सबूत महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड लुइस माउंटबेटन, विंस्टन चर्चिल, क्लीमेंट एटली, लॉर्ड आर्चिबाल्ड वेवल, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, सरदार पटेल, वी.पी. मेनन एवं कृष्णा मेनन जैसी कई विशिष्ट हस्तियों पर नई रोशनी डालते हैं। पुस्तक की विषयवस्तु उन अल्पज्ञात तथ्यों को भी प्रकाश में लाती है जिनका सम्बन्ध अमेरिका द्वारा एक नई उत्तर-औपनिवेशिक विश्व-व्यवस्था विकसित करने की आशा में सहयोग के अतिरिक्त, भारत की स्वतन्त्रता के पक्ष में ब्रिटेन पर बनाए गए अप्रत्यक्ष दबाव से है। लेखक ने वर्तमान कश्मीर के मूल कारणों और संयुक्त राष्ट्र में इस मामले पर हुए विचार-विमर्श की रूपरेखा भी यहाँ प्रस्तुत की है।
यह समयोचित पुस्तक वर्तमान भारतीयों के लिए एक चेतावनी है कि वे उस अति आदर्शवाद, अति गर्व एवं पलायनवाद से बचें जिसके शिकार उनके कुछ पूर्वज हुए।
भारत के विभाजन एवं अंग्रेजों की आशंकाओं के मध्य निर्णायक कड़ी थी-सोवियत रूस का मध्य-पूर्व में ऊर्जा के (तैल) कूपों पर नियन्त्रण, जिस पर इतिहासकारों एवं विश्लेषकों ने पर्याप्त जिस पर इतिहासकारों एवं विश्लेषकों ने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। ब्रिटिश नेताओं ने जब अनुभव कर लिया कि भारतीय राष्ट्रीय नेता सोवियत यूनियन के विरुद्घ महाखेल में उनका सहयोग नहीं करेंगे, उन्होंने ऐसी परिस्थिति तैयार करने की सोची कि वे उनसे अपने मन्तव्य को पूरा करा लें। इस प्रक्रिया में, वे अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु ‘इस्लाम’ का राजनीतिक इस्तेमाल करने में भी नहीं हिचके। कैसे एक सघन धूम्रपट के पीछे इस योजना की कल्पना की गई और कैसे इसे कार्यान्वित किया गया-यही सब इस ‘विभाजन की असली कहानी’ की विषयवस्तु है।
लेखक द्वारा खोज निकाले गए अतिगोपनीय दस्तावेजी सबूत महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड लुइस माउंटबेटन, विंस्टन चर्चिल, क्लीमेंट एटली, लॉर्ड आर्चिबाल्ड वेवल, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, सरदार पटेल, वी.पी. मेनन एवं कृष्णा मेनन जैसी कई विशिष्ट हस्तियों पर नई रोशनी डालते हैं। पुस्तक की विषयवस्तु उन अल्पज्ञात तथ्यों को भी प्रकाश में लाती है जिनका सम्बन्ध अमेरिका द्वारा एक नई उत्तर-औपनिवेशिक विश्व-व्यवस्था विकसित करने की आशा में सहयोग के अतिरिक्त, भारत की स्वतन्त्रता के पक्ष में ब्रिटेन पर बनाए गए अप्रत्यक्ष दबाव से है। लेखक ने वर्तमान कश्मीर के मूल कारणों और संयुक्त राष्ट्र में इस मामले पर हुए विचार-विमर्श की रूपरेखा भी यहाँ प्रस्तुत की है।
यह समयोचित पुस्तक वर्तमान भारतीयों के लिए एक चेतावनी है कि वे उस अति आदर्शवाद, अति गर्व एवं पलायनवाद से बचें जिसके शिकार उनके कुछ पूर्वज हुए।
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